सरप्राइज
तुम्हें अकस्मात् देखने की खुशी. सच में. ये शायर लोग झूठ नहीं कहते थे. मन में बेचैनी और प्यार का मिला जुला ज्वार फूटता है. जुल्फों में हवा की रवानी बढ़ जाती हैं. दिल की बंजर धरा पर जम कर बरसात होती है. कानों में शहनाइयों की गूँज, हवा में बहती खुशबू, लहू में उफान और मंज़र में सिर्फ गुलशन-गुलशन. हरा, पीला, गुलाबी, लाल...सारे रंग तुम्हारे इर्द गिर्द नज़र आते हैं. मन फूले नहीं समता है. सभ्यता के कानून बेड़ियों की तरह अभिव्यक्ति को कैद करके भी रोक नहीं पाते हैं. जो अनकही, अनकरी रह जाती है, वो आँखों से झर-झर प्रेम बनकर बहती है. लगता है जैसे इसी ख़ास अनुभूति के लिए समय की कोक से यह दिन जन्मा था. आज वक़्त की डायरी में मेरे लिए एक विशेष एन्ट्री थी. एक ऐसा उपहार जिसे पाने की खुशी मैं दोनों हाथों, या पूरे शरीर, या पूरे ब्रह्माण्ड में भी समेट न पाऊँ. ये सब कह देने के बाद भी बात अधूरी रह जाती है. शायद इसलिए कि इस ख़ुशी को एक लेख में बांधना उतना ही असंभव है जितना एक नदी को अपनी आगोश में एक समंदर को कैद करना. हाँ लेकिन सोचिये ज़रा, मिलन के कुछ क्षण पहले उस नदी की हलचल, जो अपने समंदर में समान...