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दो जोड़ी कपड़ा

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हमारे जीवन में एक ऐसा भी समय आया जब दुकानें बंद हुईं। एक दो दिन के लिए नहीं, बल्कि लम्बे समय के लिए। और जैसा की ऐसे समय में अक्सर होता है, लोगों को महसूस हुआ कि हमें वास्तव में दो जोड़ी कपड़े से अधिक सामान की ज़रुरत ही नहीं थी।   ये वो लोग थे जिनकी मम्मी मेरी वाली से अलग रही होंगी। पूरा बचपन अम्मा को घर में दो चार कपड़े ही पहनते देख बीता। ये उसकी ही देन है कि अपना खुद का घरेलू जीवन दो-चार कपड़ों में ही व्यतीत हुआ, और संभवतः ऐसा ही होता रहेगा। माँ और पापा, दोनों की राय इस विषय में एक सामान रही।  स्नानघर से एक जोड़ी पहन कर बाहर निकलते तो हाथ में धुली हुई दूसरी जोड़ी रहती।  एक दिन में धुले हुए कपड़े सूख जाते, और cloth management का यह क्रम तब तक चलता जब तक कपड़े छीज नहीं जाते। सर्दी के दिनों में, आसानी से कपड़ों के न सूखने की वजह से, पोशाक की संख्या में 1-2 का इजाफा दर्ज़ होता। कई बार तो (ख़ास कर के पापा को) कपड़ो से ऐसा लगाव हो जाता कि हमें अपने कर कमलों से उन वस्त्रों को डस्टिंग के कपड़ों में बदलने का सुख प्राप्त होता। अपने घरवालों की पुरानी बनयान, कमीज, सूट, सलवार, मैक्सी और निक्कर के चीथड़ों से घर क