दिल्ली में बारिश
दिल्ली में बारिश
मज़ाक सा लगता है...
ठीक वैसा,
जैसा कभी तुमने मेरे साथ किया था
आए थे,
तो सिर्फ जाने के लिए
मिले थे,
जैसे एहसान जताने के लिए
जितना सुकून दे न गए
उससे कहीं अधिक
बेचैनी बढ़ा गए
तन तो गीला कर गए
पर मन सूखा छोड़ गए
बिन मौसम आए
बिन मौसम बरसे
पर जब मन से पुकारा,
जब दिल से आह भरी,
जब हाथ जोड़ कर बिनती की,
जब आँसू तक राह देखते थक गए,
तब
तब ज़ालिम
तब
तुम न आए
दिल्लगी करने के लिए कुछ और न मिला था क्या...
जो मेरी तमन्नाओं के साथ खेलते रहे?
तुम्हारा मज़ाक
दिल दुखाने वाला मज़ाक
ठीक दिल्ली की बारिश जैसा लगता है...
मज़ाक सा लगता है...
ठीक वैसा,
जैसा कभी तुमने मेरे साथ किया था
आए थे,
तो सिर्फ जाने के लिए
मिले थे,
जैसे एहसान जताने के लिए
जितना सुकून दे न गए
उससे कहीं अधिक
बेचैनी बढ़ा गए
तन तो गीला कर गए
पर मन सूखा छोड़ गए
बिन मौसम आए
बिन मौसम बरसे
पर जब मन से पुकारा,
जब दिल से आह भरी,
जब हाथ जोड़ कर बिनती की,
जब आँसू तक राह देखते थक गए,
तब
तब ज़ालिम
तब
तुम न आए
दिल्लगी करने के लिए कुछ और न मिला था क्या...
जो मेरी तमन्नाओं के साथ खेलते रहे?
तुम्हारा मज़ाक
दिल दुखाने वाला मज़ाक
ठीक दिल्ली की बारिश जैसा लगता है...
जाँ निसार अख़्तर की यह गज़ल मुझे प्यारी है. अब आपकी यह कविता क्यों इस गज़ल को भी याद दिला गई, यह तो पता नहीं :
ReplyDeleteहमने काटी हैं तिरी याद में रातें अक्सर
दिल से गुज़री हैं सितारों की बरातें अक्सर
और तो कौन है जो मुझको तसल्ली देता
हाथ रख देती हैं दिल पर तिरी बातें अक्सर
हुस्न शाइस्ता-ए-तहज़ीब-ए-अलम है शायद
ग़मज़दा लगती हैं क्यों चाँदनी रातें अक्सर
हाल कहना है किसी से तो मुख़ातिब हो कोई
कितनी दिलचस्प, हुआ करती हैं बातें अक्सर
इश्क़ रहज़न न सही, इश्क़ के हाथों फिर भी
हमने लुटती हुई देखी हैं बरातें अक्सर
हम से इक बार भी जीता है न जीतेगा कोई
वो तो हम जान के खा लेते हैं मातें अक्सर
उनसे पूछो कभी चेहरे भी पढ़े हैं तुमने
जो किताबों की किया करते हैं बातें अक्सर
हमने उन तुन्द हवाओं में जलाये हैं चिराग़
जिन हवाओं ने उलट दी हैं बिसातें अक्सर
So true....very nice.
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