तुम
मेरी साँसों में जो दहक है उसमें तुम्हारी महक है संगीत में जो धनक है क्या वो तुम्हारी ही आवाज़ की खनक है मेरी आसुओं में जो असर है तुझसे दूरी का कसर है मेरी चाल में जो रवानी है तुम्हारी पल-पल की कहानी है मेरी खुली आज़ाद हंसी में हैं तेरी ख्वाहिशें बसीं मैं जो भी जैसी भी बनी हूँ तुम्हारी मिट्टी में ही सनी हूँ और तुम कहते हो मैं तुम्हें याद नहीं करती?