मलाई बाई
जब चुना तुमने बाहर का द्वार फंदे के रास्ते तुम्हारे साथ रुखसत हुए तुम्हारे बेबात नखड़े तुम्हारी बेबाक हंसी तब पता चला कि है नहीं दुःख पचाने की ताकत मुझमें या हमारी तीसरी सहेली में जब देखा उसको भी मैंने तुम्हारा नाम आने पर हाथ मलते यकीनन सब ठीक न था यह तो सात दिन पहले तुम्हारे चहरे से बयां था जो तुमसे प्रकट न हुआ उसका मर्म हमें खींचता है दुखद, अज्ञात, भयावह तुम्हारा, हमारा जीवन एक अधूरा सवाल उसके उत्तर की अपेक्षा है या तो व्यर्थ, या ज्ञान का निचोड़ तुम्हें दिखते हैं न हम? ग्लानि की अज्ञेय-सी लाचारी से जूझते हुए? एक अलग ही रिश्ता था हमारा जिसके तीन भिन्न पूरक थे एक अनकहा सा प्यार हमारे बीच (तुम खुल कर कहने से ठहरी) वो प्रतिदिन मिलने का अनुशासन गवाह था, प्रौढ़ मित्रता का निजी बातें अप्रत्यक्ष, पर सब पता आलिंगन, शायद एक भी नहीं फिर मैं क्यूँ देखती हूँ आये दिन तुम्हारी तस्वीरें तुम्हारी मलाई-नुमा बाहें तुम्हारा साइड-पोज़ में इतराना हमेशा मुंह पर आते बाल और दांत-छिपाए फोटो वाली सभ्य मुस्कान कितन...