अपराजेय
(लेखिका द्वारा कविता का पाठ देखें यहाँ)
जब धरती डोले उथल पुथल
और काल करे तांडव अज्ञेय
मन भी हो विपरीत व्याकुल,
स्मरण रहे, तुम हो अपराजेय!
प्रारूप सत्य के असंख्य सही
पर भेद सनातन एकल है
वीर अथक होगा विजयी
जो सच्चा है और निश्छल है
तितली का मोहक वेश धरे
विषैले सर्प जब आयेंगे
स्नेह समर्पित हाथों को
पुनः छल से डस जायेंगे
फिर भी तुम रखना मानव में
विश्वास वही पवित्र, अटूट
लुप्त न हो रस जीवन से
करुणा न जाए, हाथों से छूट
दस्तक देगा जब जब शत्रु
दुहरायेगा आतंक अनेक
टोली होगी निंदकों की
होगा हर हाथ में पत्थर एक
ओ! नेक दिल, तू उदास न हो
समूह समय का बंदी है
लक्ष्य अस्थिर, तू बढ़ता चल
काल्पनिक सारी पाबंदी है
आने दे जिनको आना है
विरोध-विलीन कृपाण लिए
बीभत्स अधरों पर अपशब्द
आरोपों के बाण लिए
धारण कर धैर्य शांत-चित्त
ध्वस्त हुए घोर पापी भी
जहां खड़ा मानव, निडर, उचित
सच्चा भी, आत्मविश्वासी भी
चाहें झोंके वे अग्नि में
चाहे जल का प्रहार करें
रौंद भी दें गर मिट्टी में
उत्पीड़न के वार करें
तप कर तुम बनना स्वर्ण
प्रखर
जल में तुम धोना त्रुटि विषाद
मिट्टी में बोना बीज
अपने
कि हो गुलशन फिर आबाद
पर उल्लंघन सीमाओं की हो
अत्यंत हो जब पाप का
असह्य हो अधर्म असीम
घड़ा भरे संताप का
तब धरना तुम रौद्र रूप
युद्ध घोषित करना संहार
विकराल सही, पर ध्यान
रहे
हो न्यायसंगत, प्रत्येक
वार
अन्याय के संघर्ष में
रहना सतर्क इस जोखिम से
न हो कहीं आतंरिक विकार
न बन जाओ तुम, प्रतिद्वंदी
से
प्रणय पुनः पुलकित होगा
पक्ष में होगा समय इस
बार
दागदार शरीर तो क्या
ह्रदय वही जो नम्र, उदार
तुम पीर भी हो, तुम शूर
भी हो
वृद्धि है लक्ष्य, परहित
है ध्येय
तुम्हारा है, ब्रह्माण्ड
सकल
स्मरण रहे, तुम हो
अपराजेय
हिंदी में जितनी कविताएँ तुमने लिखी हैं उनमें सबसे अच्छी। भावनाओं व शब्दों का अद्भुत मेल। मेरा ये मानना है कि कविता लेखन में धार तभी आती है जब उन या उन जैसी परिस्थितियों को आपने स्वयम् झेला या करीब से महसूस किया हो और ये कविता इस मापदंड पर खरी उतरती है।
ReplyDeleteतुम पीर भी हो, तुम शूर भी हो
वृद्धि है लक्ष्य, परहित है ध्येय
तुम्हारा है, ब्रह्माण्ड सकल
स्मरण रहे, तुम हो अपराजेय
सार यही है इस कविता का.. मनुष्य ऐसा कर सके तो सच मन तो निर्मल रहेगा ही साथ ही उसकी आंतरिक शक्ति कभी क्षीण नहीं होगी।
बस तुम्हारी लेखनी यूँ ही चलती रहे इन्हीं शुभकामनाओं के साथ !
एक लेखक के लिए सबसे बड़े संतोष की बात यह होती है कि उसकी लेखनी को वैसे ही समझा जाए, जिस भावना से उस लेखनी का उपज हुआ. हमेशा की तरह, बात को जड़ से समझने के लिए धन्यवाद. सराहना तो icing on the cake है!
Deleteबहुत बढ़िया। किसी समकालीन की वीर रस से ओत-प्रोत कविता कम ही पढ़ने को मिलती है। अच्छा लगा।
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