कभी कभी कुछ
कभी नंगे पाँव गीली घास पर चल लेती हूँ कभी बालों को बिखेर भरी बरसात में टहल लेती हूँ कभी चाँदनी रात में छत पे बैठे कुछ गा लेती हूँ कभी राह चलते अनजाने बच्चों में बाहें उलझा लेती हूँ कभी बाथरूम के अन्दर बिलख-बिलख कर रो लेती हूँ कभी अपनी माँ के साथ चिपककर सो लेती हूँ कभी किसी किताब को चंद घंटों में पढ़ लेती हूँ कभी कोरे कागज़ पर सपनों का जहां गढ़ लेती हूँ कभी दोस्तों के साथ ठहाकी हंसी हंस लेती हूँ कभी बहते घावों पर बेजान पट्टी कस लेती हूँ पर चाहे कुछ भी कर लूं मैं तू याद हर वक़्त आता है बहानों की लगाम छुडाकर दिल तेरे पीछे ही जाता है