वो तुम थे क्या?
निकली थी धूप में
पर कुछ दिखाई न दिया
बचपना कुछ ऐसा था
नादानी कुछ इतनी थी
की खुद से दूर चलती गयी
अनजानी राहों में घुलती गयी
मन ने टोका तो बहुत
रूह ने रोका तो बहुत
पर कुछ सुनाई न दिया
चकाचौंध से धुंधले थे नयन
झूठे आसरों से भ्रमित था मन
फिर मौसम एकाएक बदला
खुल गए ज़हन के सारे द्वार
आज़ाद हुई आत्मा, फूटा ज्वार
वो तुम थे , या था कोई इश्वर
जो सौंप गया मुझे मेरा अस्तित्व
किया मेरी प्रथिभओं को प्रखर
जब छोटी थी, सोचा था लिखूंगी
प्यार में भी पडूँगी, एक दिन खिलूंगी
बड़ी होकर, मैं यूं नाचूंगी
पोथियाँ, ग्रन्थ, सब दे बाचूंगी
फिर पता नहीं कब,
टूटा समय पर बस
शब्दों को लीं, बड़ियों ने कस
फिर बातों बातों में, तुम्हें भी सुना
खुली आँखों से, एक सपना बुना
वो तुम थे, या था मेरा आत्मविश्वास
बो गया जो बीज प्रेम के
फिर जिलाई मुझमें, जीने की आस
वो तुम थे या थी इक पागल हवा
इलाज कर दे हर मर्ज़ का, इक ऐसी दवा
वो तुम थे या था कोई गुरु
चरणों में जिसके सिमटे जहां, और वहीँ से हो शुरू
वो तुम थे या था जीवन का प्यार
हर आगामी संघर्ष के लिए, जो कर गया मुझे तैयार
वो तुम थे या था मेरा ही अहम्
वो तुम थे या था मेरा ही करम
वो तुम थे या था मेरा ही धरम
पर कुछ दिखाई न दिया
बचपना कुछ ऐसा था
नादानी कुछ इतनी थी
की खुद से दूर चलती गयी
अनजानी राहों में घुलती गयी
मन ने टोका तो बहुत
रूह ने रोका तो बहुत
पर कुछ सुनाई न दिया
चकाचौंध से धुंधले थे नयन
झूठे आसरों से भ्रमित था मन
फिर मौसम एकाएक बदला
खुल गए ज़हन के सारे द्वार
आज़ाद हुई आत्मा, फूटा ज्वार
वो तुम थे , या था कोई इश्वर
जो सौंप गया मुझे मेरा अस्तित्व
किया मेरी प्रथिभओं को प्रखर
जब छोटी थी, सोचा था लिखूंगी
प्यार में भी पडूँगी, एक दिन खिलूंगी
बड़ी होकर, मैं यूं नाचूंगी
पोथियाँ, ग्रन्थ, सब दे बाचूंगी
फिर पता नहीं कब,
टूटा समय पर बस
शब्दों को लीं, बड़ियों ने कस
फिर बातों बातों में, तुम्हें भी सुना
खुली आँखों से, एक सपना बुना
वो तुम थे, या था मेरा आत्मविश्वास
बो गया जो बीज प्रेम के
फिर जिलाई मुझमें, जीने की आस
वो तुम थे या थी इक पागल हवा
इलाज कर दे हर मर्ज़ का, इक ऐसी दवा
वो तुम थे या था कोई गुरु
चरणों में जिसके सिमटे जहां, और वहीँ से हो शुरू
वो तुम थे या था जीवन का प्यार
हर आगामी संघर्ष के लिए, जो कर गया मुझे तैयार
वो तुम थे या था मेरा ही अहम्
वो तुम थे या था मेरा ही करम
वो तुम थे या था मेरा ही धरम
"जब छोटी थी, सोचा था लिखूंगी"
ReplyDeleteबड़ी हुई तो बस कृतियाँ रचती गयी
वह तुम थी, बस तुम ही तो थी.