उफ़ ये सावन

तुम तो चले गए
पर वो फिजायें न गयीं

दिल को गुदगुदा दे
वो ठंडी हवा आज भी बहती है
पेड़ पर बैठी पगली कोयल
प्यार से कुछ आज भी कहती है
गीली मिटटी की सौंधी खुशबू
आज भी बहकाती है
ठिठुरते तन को बारिश की बूँदें
आज भी सहलाती हैं
पुराने गानों की वो जानी-सी धुन
आज भी सुनाई देती है
वो घर, बगीचे, दुकानें
आज भी दिखाई देती हैं

तुम तो चले गए
पर सावन लौट आया है

अब हवाएं सहलाती नहीं,
तडपाती हैं
बारिश की बूँदें
बदन में छेद कर जाती हैं
जो मन छलांगे भरता था
अब दबता सा जाता है
जहां एक पल खाली न था
अब खालीपन से भरा जाता है

एक टूटे दिल के लिए
क्या बरसात और क्या नजाकत है
सच पूछो मुझे तुमसे नहीं
इस मौसम से शिकायत है...

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