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Showing posts from May, 2015

मलाई बाई

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जब चुना तुमने बाहर का द्वार फंदे के रास्ते तुम्हारे साथ रुखसत हुए   तुम्हारे बेबात नखड़े तुम्हारी बेबाक हंसी तब पता चला कि है नहीं दुःख पचाने की ताकत मुझमें या हमारी तीसरी सहेली में जब देखा उसको भी मैंने तुम्हारा नाम आने पर हाथ मलते यकीनन सब ठीक न था यह तो सात दिन पहले तुम्हारे चहरे से बयां था जो तुमसे प्रकट न हुआ उसका मर्म हमें खींचता है दुखद, अज्ञात, भयावह तुम्हारा, हमारा जीवन एक अधूरा सवाल उसके उत्तर की अपेक्षा है या तो व्यर्थ, या ज्ञान का निचोड़ तुम्हें दिखते हैं न हम? ग्लानि की अज्ञेय-सी लाचारी से जूझते हुए? एक अलग ही रिश्ता था हमारा जिसके तीन भिन्न पूरक थे एक अनकहा सा प्यार हमारे बीच (तुम खुल कर कहने से ठहरी) वो प्रतिदिन मिलने का अनुशासन गवाह था, प्रौढ़ मित्रता का निजी बातें अप्रत्यक्ष, पर सब पता आलिंगन, शायद एक भी नहीं फिर मैं क्यूँ देखती हूँ आये दिन तुम्हारी तस्वीरें तुम्हारी मलाई-नुमा बाहें तुम्हारा साइड-पोज़ में इतराना हमेशा मुंह पर आते बाल और दांत-छिपाए फोटो वाली सभ्य मुस्कान कितना कम

परहित = परमानन्द

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Replace woman with human, and you have the meaning complete युगों युगों से मानव सभ्यता की कोशिश रही है, उस रहस्य का पता लगाना, जिसे आत्मसात कर लेने से मनुष्य एक ऐसी मनोस्थिति में खुद को पाता है, जहां आनंद ही आनंद है. जहाँ न भविष्य की चिंता, न भूत का पश्चाताप, न समाज का भय, न स्वीकृति की आवश्यकता. बस, एकल सुख. मैं वेदों की ज्ञाता नहीं. सत्य की विदुषी नहीं. मुझे ईश्वर में आस्था नहीं. गुरुओं और बाबाओं से दूर रहने वाली ठहरी. उन दुकानों में लोगों को जैसा जाते देखा, वैसा ही आते देखा, किंचित अधिक रूढ़ियों के साथ. कर्म ही मेरी पूजा रही. अध्ययन को तपस्या माना. सीखने और जानने की लालसा को प्रेरणा का स्रोत बनाया. पेड़ों के पत्तों से छनती धूप में सृष्टि का जादू देखा. इंसानों के सौहार्द में सरस्वती की वीणा सुनाई दी. पंछियों की चहचहाहट में अप्सराओं की हंसी. कुछ मनुष्य तो साक्षात भगवान के अवतार नज़र आये. लेकिन इन सब से परे - प्रकृति, जीव, मित्रता, कर्म, प्रेम, करुणा, साहित्य, नृत्य, संगीत, अभिव्यक्ति, ज्ञान, सम्बन्ध – अगर कोई एक ऐसी अनुभूति है, जो सबसे अधिक सुखमय है, तो वह है, परह