Posts

Showing posts with the label तेरी याद

तुम तक

Image
ट्रैफिक की आपाधापी. गाड़ियों की बेइंतहा समंदर सी भीड़. स्टीयरिंग पर बेचैन होती मैं, इधर उधर कहीं से भी रस्ता बनाती मैं, घड़ी में सेकंड की सुई को कोसती हुई नज़रों से धिक्कारती मैं. यूँ कहें, हर शाम ऑफिस से घर आती हुई, तुमसे फिर मिल जाने के लिए, एक बार फिर, बेताब बेकल मैं. ट्रैफिक की ऊब से लेकर बाहों में खो जाने का सुकून - ये सफर तुम से, तुम तक. ………………………………………………………………………………………… कानों में शहनाई का स्वर. घर भर में पूजा की सी खुशबू. केले-अगरबत्ती-रोली-धूप से सराबोर सुगन्धित हवा. दिसंबर की ठंढ और शादी के मूड से रूमानी होती हवा. बंद दरवाजों के पीछे बल्ब की पीली रौशनी में संवरती मैं. दरवाज़े के दूसरी ओर माथा मलते तुम, जल्दी करने की गुहार लगाते तुम. जल्दी कहीं जाने की नहीं. जल्दी मुझे देखने की. वो भी तुम्हारी दी हुई साड़ी में. नारंगी साड़ी, काला ब्लाउज. न के बराबर मेकअप. खुले बाल. बड़ी बिंदी. कम से कम ज़ेवर. तुम्हारी पसंद में ढलती, खुद से और करीब महसूस करती, तैयार होती मैं. चिटखनी खोलते ही मुझे सर से पैर तक, अधीर आँखों से पीते हुए तुम. स्तब्ध सन्नाटे में रोम-रोम से झर-झर प्रे...

तुम्हारा ऐसा होना

Image
तुम्हारा चेहरा नीचे करके एकाग्र ध्यान से सामने वाले को देखना तुम्हारा बातों को वैसे सुनना जैसे छोटे बच्चे का माँ को तुम्हारा खड़े होकर अंगड़ाई लेना तुम्हारा औरों का आभास इतना बारीक होना तुम्हारा माथे पर बल न आने देना तुम्हारा आवाज़ को कर्कश न होने देना तुम्हारा हमेशा न तैयार होकर भी तैयार रहना तुम्हारा हमेशा सब कुछ जानना और कुछ न तौलना तुम्हारा चलते फिरते किसी भी शीशे में बाल सेट करना तुम्हारा गंभीर मतभेदों को भी हँसते-खेलते झेल जाना संगीत सुनते ही तुम्हारे सिर का सुर में हलके-हलके नाचना तुम्हारी बातों का कानों पर वैसे बीतना जैसे बारिश की बूंदों का होठों पर तुम्हारा अक्सर हंसना और हंसी बिखेरना तुम ही कहो, तुम्हारा ऐसा होना अगर खुदाई का गवाह नहीं, तो और क्या है?

मलाई बाई

Image
जब चुना तुमने बाहर का द्वार फंदे के रास्ते तुम्हारे साथ रुखसत हुए   तुम्हारे बेबात नखड़े तुम्हारी बेबाक हंसी तब पता चला कि है नहीं दुःख पचाने की ताकत मुझमें या हमारी तीसरी सहेली में जब देखा उसको भी मैंने तुम्हारा नाम आने पर हाथ मलते यकीनन सब ठीक न था यह तो सात दिन पहले तुम्हारे चहरे से बयां था जो तुमसे प्रकट न हुआ उसका मर्म हमें खींचता है दुखद, अज्ञात, भयावह तुम्हारा, हमारा जीवन एक अधूरा सवाल उसके उत्तर की अपेक्षा है या तो व्यर्थ, या ज्ञान का निचोड़ तुम्हें दिखते हैं न हम? ग्लानि की अज्ञेय-सी लाचारी से जूझते हुए? एक अलग ही रिश्ता था हमारा जिसके तीन भिन्न पूरक थे एक अनकहा सा प्यार हमारे बीच (तुम खुल कर कहने से ठहरी) वो प्रतिदिन मिलने का अनुशासन गवाह था, प्रौढ़ मित्रता का निजी बातें अप्रत्यक्ष, पर सब पता आलिंगन, शायद एक भी नहीं फिर मैं क्यूँ देखती हूँ आये दिन तुम्हारी तस्वीरें तुम्हारी मलाई-नुमा बाहें तुम्हारा साइड-पोज़ में इतराना हमेशा मुंह पर आते बाल और दांत-छिपाए फोटो वाली सभ्य मुस्कान कितन...

सरप्राइज

Image
तुम्हें अकस्मात् देखने की खुशी. सच में. ये शायर लोग झूठ नहीं कहते थे. मन में बेचैनी और प्यार का मिला जुला ज्वार फूटता है. जुल्फों में हवा की रवानी बढ़ जाती हैं. दिल की बंजर धरा पर जम कर बरसात होती है. कानों में शहनाइयों की गूँज, हवा में बहती खुशबू, लहू में उफान और मंज़र में सिर्फ गुलशन-गुलशन. हरा, पीला, गुलाबी, लाल...सारे रंग तुम्हारे इर्द गिर्द नज़र आते हैं. मन फूले नहीं समता है. सभ्यता के कानून बेड़ियों की तरह अभिव्यक्ति को कैद करके भी रोक नहीं पाते हैं. जो अनकही, अनकरी रह जाती है, वो आँखों से झर-झर प्रेम बनकर बहती है. लगता है जैसे इसी ख़ास अनुभूति के लिए समय की कोक से यह दिन जन्मा था. आज वक़्त की डायरी में मेरे लिए एक विशेष एन्ट्री थी. एक ऐसा उपहार जिसे पाने की खुशी मैं दोनों हाथों, या पूरे शरीर, या पूरे ब्रह्माण्ड में भी समेट न पाऊँ. ये सब कह देने के बाद भी बात अधूरी रह जाती है. शायद इसलिए कि इस ख़ुशी को एक लेख में बांधना उतना ही असंभव है जितना एक नदी को अपनी आगोश में एक समंदर को कैद करना. हाँ लेकिन सोचिये ज़रा, मिलन के कुछ क्षण पहले उस नदी की हलचल, जो अपने समंदर में समान...

ज़िद्दी, पर मेरा

Image
घात पर घात सहता जाता चुपचाप खामोश बहता जाता समझौते भी करता अजीब से ठाना हो बैर जैसे नसीब से वक़्त के थपेड़े मुंह पर खाता जिद् से फिर भी बाज़ न आता अमावस की रातों में सहलाता अपने चोट हैरानी ज़मानों की उसके सदा हँसते होठ बातों में शहद है, ठहाकों में किलकारी झलक भर ही दिखे है, टीसों वाली चिंगारी जाने कहाँ और कितना, बहता इसका पानी यातना में डूबी जैसे, इक मीठी-सी कहानी दफन हैं सीने में गूंजते सन्नाटे भेदती हवाओं में ठंढी रात फ़कीर काटे लगाये बैठा गले है ज़िद को, ये अक्खड़ सा दिल सुनता नहीं मशवरे, बस ताकता मंज़िल घात पर घात सहता जाता चुपचाप खामोश बहता जाता...

धुंध

Image
आज भोर की धुंध जैसे मेरी ज़िंदगी की कहानी बयां कर रही थी. रस्ता अकेला था, मौसमों ने तन्हाई की चादर ओढ़ रखी थी. पक्षी भी जैसे सहमे कहीं चुप बैठे थे. हवा की ठंढक में सर्दी का खुश्नुमापन भी था, और रूह को झकझोरने वाली कठोरता भी. एक ओर, इक शर्मीली युवती की आधी हंसी जैसी खुल रही थी हवाएं. दूसरी ओर, कोहरे की परत मातम का माहौल बना रही थी – घोर, भीषण, निस्तब्ध. चीखता सन्नाटा. उस खामोशी में चुनौती थी...यदि हिम्मत कर सको तो अपने ह्रदय की तड़पती गहराइयों से एक नज़्म ढूंढ निकालो. और बरसों की यातना, सदियों का प्रेम उसमें निचोड़कर, उस बंदिश को अपने कंठ का सहारा दो. उसे गाओ. मर्म और वेदना से उत्पन्न एक ऐसे लय का सृजन करो कि तुम्हारी गूँज में फिजायें समा जाएँ. वो गीत, तुम्हारी रचना, तुम्हारा पैदावार...वही तुम्हें इस धुंध से बाहर निकलेगा. नहीं, तो इसी अंधकार में लुप्त हो जाओ, करने दो इस धुंध को तुम्हें भ्रमित, गुमने दो फिर से रास्ता, खो जाने दो उस एकमात्र डोर को जो तुम्हें मंजिल तक ले जा सकती है. हिल जाने दो उस वजह जो, जो आज तक तुम्हारा अस्तित्व बनी हुई है. तुम्हारी आस्था. धुंध की दीवार थी...और...

बहाने

Image
“जब-जब मेरी याद आये, किसी भी बहाने से मुझे बुला लेना...” ट्रेन में चढ़ने से कुछ मिनट पहले तुम दाँत चिआरते हुए कह गए. मैं दूर तक तुमको देखती रही. ट्रेन की छुक-छुक जब मेरे दिल की धड़कन सी तेज़ हो गयी, तब तक. पटरी पर घड़घड़ाते हुए आखिरी डब्बे के निकल जाने के बाद तक. प्लेटफार्म से भीड़ छंट जाने के बाद तक. मेरे मन में उदासी का एक भारी सा लौंदा पिघलकर पानी, और फिर उड़कर काले बादलों सा घिर आया, तब तक...मैं देखती रही, सोचती रही. किसी भी बहाने से बुला लेना? सुबह कॉलेज जाने से पहले, जब बस स्टॉप से उतर के, बेसब्री से सड़क पार करके तुम्हारी बाइक तक जाते-जाते पसीने से लथ-पथ हो जाती थी, तब तुम अपने हाथ से ग्लव उतारकर मेरे माथे का पसीना पोछ देते थे. फिर उतने ही ध्यान से होंठ के ऊपर जमी बूंदों को ऊँगली फेरकर ऐसे समेटते थे जैसे समुन्दर की गहराइयों से निकले मोती हों. फिर मेरे चहरे को हाथ में बटोरकर कहते थे – good morning Rockstar! और मैं हर दिन, उसी हैरानी, उसी मेहरबानी के साथ ज़िंदगी का शुक्रिया अदा करती थी जिसने तुमसे सिर्फ मिलाया ही नहीं, तुम्हारा प्यार भी मुकम्मल कराया. तुम्हारे जाने के बाद, अन्द...

मैं क्या-क्या हो सकती थी

Image
सुना है रोज़ सुबह उसे चाय की तलब सताती है सुना है एक डाइरी है , जिसे वो काँख तले दबाये चलता है लोग बताते हैं , वो कोने वाली गुमटी से पान खाता है और पुरनकी बजार वाला पेड़ा पसंद करता है जाने कहाँ से बनी हैं वो ऐनकें जिन्हें वो सोते वक़्त भी बगल में रखता है और वो गर्मी वाली खादी की बूशर्ट जिसे हर तीसरे दिन पहनता है एक लंच-बॉक्स भी लाता है जिसे चाट-चाट कर खाता है और वो सुनहरी ठेपी वाली कलम को सीने से लगी पॉकेट में रखता है... हाय किस्मत ! मैं क्या-क्या हो सकती थी- वो प्याली , वो डाइरी , वो पान , वो चश्मे , वो कमीज़ , वो बर्तन , वो कलम , वो पेड़े ...  

कभी तो तुमसे रूठेंगे

ऐ प्यारे। ऐ मेरे ज़ालिम। ओरे मेरे डार्लिंग। एगो बात कहें ? तुम ना , एगो चाकू लेके मेरे आर-पार कर दो। ई साल भर मीठा-मीठा आंच पर पकने से अच्छा है एक ही दिन में मामला खतम हो जाये। तुम्ही बताओ , तनी बेसी नहीं कर रहे हो तुम ? बताओ , कोई लिमिट ना होना चाहिए जी ? इंत जा र का ? हम बता दे रहे हैं। अब तुम इसको धमकी समझो या गुंडई। अब हमसे और नहीं सहा जाता। तुम हर बार जाते हो तो लगता है जैसे जीवन ही रूठ गया हो हमसे। चाह के भी तुमको रोक नहीं सकते। जाने कै से आदमी हो तुम कि तुमसे लड़ने में , या तुमको बुरा-भला सुनाने में , अपने-आप को ही खराब लगता है। सच्ची बताओ , टोना-ऊना सीखे हो क्या कहीं से ? हमको पुराने जमाने की कहानी के राजा जैसा फील होता है। जिसका प्राण दूर किसी पिंज रा में बंद सुग्गा में कैद रहता था। काहे रे मोर सुगवा , लाजो नईखे लागत हमरा ई हाल कर के ? हमको बहुत दिन से सच्चे लग रहा था कि हम स राफत कि मूरत बनते जा रहे हैं। तुम कहते हो ठहरो , तो चुप-चाप ठहर जाते हैं। तुम कहते हो चलो , तो तुम्हारी दुल्हनिया लेखा पीछे-पीछे चल देते हैं। तुम कहते हो बात करो , तो खुस...